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Showing posts from August, 2020

गणपति बप्पा और प्रणब दा के साथ अगस्त की गमगीन विदाई, पितृ पक्ष के साथ अनलॉक की आजादी लिए आया है 2020 का 9वां महीना

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1 सितंबर, साल का 245वां दिन। भारी मन से गणपति बप्पा की विदाई हो रही है और नम आंखों के साथ प्रणब दा को अलविदा कहना पड़ रहा है। फैसलों से लग रहा है कि ये 9वां महीना कई मायनों में कोरोना काल की लगभग समाप्ति का महीना रहेगा। ऐसे में आज पहले दिन थोड़े से बदले अंदाज के साथ मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ ताकि आपका दिन बेहतर हो और दिमाग स्मार्ट तरीके से सोचे- आज इन 10 बड़े इवेंट्स और खबरों पर रहेगी नजर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को आज अंतिम विदाई दी जाएगी। गृह नगर प.बंगाल की जगह नई दिल्ली में पूरे राजकीय सम्मान के साथ प्रणब दा का अंतिम संस्कार होगा। देशभर में आज से कोरोना अनलॉक-4 शुरू हो रहा है। इसके तहत सबसे पहले टेकअवे बार खुलेंगे। 7 सितंबर से मेट्रो चलेंगी और 21 से थिएटर खुलने लगेंगे। आज से ज्वॉइंट एंट्रेस एग्जाम JEE मेन शुरू हो रही है। तमाम विवादों के बीच इस इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में करीब 10 लाख बच्चे बैठेंगे। आज अनंत चतुर्दशी है,और देशभर में 10 दिन के गणेश उत्सव का समापन हो जाएगा। कोरोना संकट के कारण इस बार भव्य विसर्जन पर पाबंदी है। आज से वंदे भारत मिशन का छठवां चरण शुरू होग

व्यापार चलाने को कर्ज लिया था और लॉकडाउन लग गया, फाइनेंसर बाउंसर भेजने लगा, वो गाली देते और घर तबाह करने की धमकी देते थे

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दोनों भाइयों में बड़ा प्यार था। आस-पड़ोस से लेकर नाते-रिश्तेदार भी उन्हें राम-लक्ष्मण कहते थे। जो बड़ा कहता, वही छोटा वाला करता। हर काम में साथ-साथ। सुबह, शाम और दोपहर बस काम-काम और काम। इसी काम ने मेरे दोनों लालों को हमसे छीन लिया। दोनों भाई एक साथ चले गए। ये भी नहीं सोचा कि उनके बाद हमारा क्या होगा? बच्चों का क्या होगा?’ इतना कहते-कहते 78 साल के अधेश्वर दास गुप्ता कांपने लगते हैं। बगल में खड़ी उनकी पत्नी सहारे के लिए हाथ आगे बढ़ाती हैं। उनकी पत्नी का नाम उषा है और उम्र 72 साल है। अधेश्वर दास के होंठ कंपकपा रहे हैं। वो कुछ बोल रहे हैं, लेकिन गले से आवाज नहीं निकल रही। उनकी सूनी आंखें सामने दीवार पर टिकी हैं। सुधबुध गंवा चुके पति को सहारा देकर बैठाने के बाद उषा कहती हैं, 'बच्चों को हमारी इतनी भी चिंता नहीं करनी चाहिए थी। वो डरते थे कि कहीं पैसा मांगने वाले लोग हमारे बूढ़े मां-बाप को ना कुछ बोल दें। इज्जत की फिक्र थी। कितने कष्ट में रहे होंगे हमारे लाल कि एक साथ फांसी लगा ली?' दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में जिन दो सगे भाइयों ने एक साथ आत्महत्या की, उनके माता-पिता। इतना कहक

देश में सबसे ज्यादा दलित और मुसलमान कैदी यूपी में और आदिवासी मध्य प्रदेश की जेलों में बंद हैं, कॉमन जेलों में भीड़, लेकिन महिला जेलें खाली

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नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने साल 2019 के लिए जेल संबंधित एक रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक, देशभर में करीब 4.72 लाख कैदी हैं। इनमें 4.53 लाख पुरुष और 19 हजार 81 महिला कैदी हैं। जिसमें 70 फीसदी तो अंडर ट्रायल हैं, 30 फीसदी ही दोषी हैं। सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में एक लाख कैदी हैं। मध्य प्रदेश में 44 हजार 603 और बिहार में 39 हजार 814 कैदी हैं। 2019 में 18 लाख लोगों को कैद किया गया, जिसमें से 3 लाख लोगों को अभी भी जमानत नहीं मिल सकी है। रिपोर्ट के मुताबिक, दलित, मुस्लिम और आदिवासी कैदियों की संख्या आबादी में उनके अनुपात से कहीं ज्यादा है। 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश में अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी 16 फीसदी है, जबकि एनसीआरबी के आंकड़ों की मानें तो 21.7% दोषी दलित जेलों में बंद हैं। अगर आदिवासियों की बात करें, तो दोषी कैदी 13.6% और 10.5% कैदी अंडर ट्रायल हैं। जबकि, इनकी कुल आबादी देश में 8.6% है। ओबीसी से ताल्लुक रखने वाले 34.9% दोषी जेलों में कैद हैं, जबकि इनकी आबादी 40% के आसपास है। जबकि, बाकी दूसरी जातियों का आंकड़ा 29.6% है। मुस्लिम वर्ग की बात करें त

17 साल उम्र थी, गर्मियों वाली टीशर्ट और हाफ पैंट में लद्दाख के लिए निकल गया, जोजिला तक पहुंचे तो जूते फट चुके थे, मजदूरों के टेंट में रात गुजारी

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पिछले तीन महीनों में देश में सबसे ज्यादा चर्चा लद्दाख की हुई है। दिल्ली से लद्दाख की दूरी 1 हजार किमी से ज्यादा है। आमतौर पर बाइक पर लद्दाख जाने वाले बहुतेरे हैं। कइयों ने मनाली से श्रीनगर का सफर साइकिल पर भी किया है। लेकिन, पैदल शायद किसी ने नहीं। ये कहानी है दिल्ली के अशोक उप्पल की, जो एक नहीं, बल्कि 2 बार पैदल लद्दाख जा चुके हैं। उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी... 15 से 25 की उम्र, वो उम्र जब दिल में आता है, कुछ भी कर जाओ। 1986 की बात है। कांवड़ यात्रा के लिए मैं पहली बार 200 किमी पैदल चलकर दिल्ली से हरिद्वार गया था। ये पैदल पहली यात्रा थी। इसके बाद वैष्णोदेवी गया। वैष्णोदेवी में बर्फ देखकर हम दोस्त चिल्लाने लगे तो वहां लोगों ने बोला ये क्या कोई बर्फ है? बर्फ ही देखना है तो लद्दाख जाओ। वहां बर्फ से रास्ते बंद रहते हैं। दिल्ली के रहने वाले अशोक उप्पल दो बार पैदल लद्दाख जा चुके हैं। जब वे 17 साल के थे तब से ही यात्रा कर रहे हैं। हमने तय किया, 1987 में कोशिश करेंगे पैदल लद्दाख जाने की। मई में छुटि्टयां थी तो गर्मियों के कपड़े, टीशर्ट और शॉर्ट्स में ही हम तीन दोस्त लद्दाख के लिए निकल ग

क्या आज से शुरू हो रही JEE के एग्जाम सेंटरों में बाढ़ का पानी भरा है? इस दावे से वायरल की जा रही फोटो का सच जानिए

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क्या हो रहा वायरल : सोशल मीडिया पर कुछ फोटो वायरल हो रही हैं। फोटो में भारी बारिश के चलते सड़कों और घरों में हुआ जलभराव दिख रहा है। दावा किया जा रहा है कि ये फोटो नीट और जेईई परीक्षा केंद्रों की हैं। फोटो शेयर करते हुए सोशल मीडिया पर सरकार से सवाल पूछा जा रहा है कि जब परीक्षा केंद्रों की यह हालत है, तो फिर परीक्षा कैसे आयोजित होगी ? देश भर के इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन के लिए होने वाली JEE मेन्स मंगलवार से शुरू हो रही है। यह परीक्षा 6 सितंबर तक होनी है। वहीं मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए होने वाली NEET 13 सितंबर को होगी। कोरोना संक्रमण के बीच हो रही इन दो परीक्षाओं को लेकर जहां पैरेंट्स परेशान हैं। वहीं, छात्रों ने लगातार परीक्षा पोस्टपोन करने की सरकार से मांग की थी। हालांकि, इसी बीच सोशल मीडिया पर इन परीक्षाओं को लेकर कई भ्रामक दावे भी किए जा रहे हैं। चार फोटो वायरल हो रही हैं 1. पहली फोटो एग्जाम सेंटर में जलभराव के दावे के साथ ये तस्वीरें पिछले एक सप्ताह से सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही हैं। 2 . दूसरी फोटो इस फोटो को देखकर स्पष्ट हो रहा है कि ये कोरोना काल की नहीं

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब नहीं, बल्कि अभिभावक और एक दोस्त के चले जाने से शोक में डूब गया मिराटी गांव

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एक अनजानी आशंका लोगों को परेशान कर रही थी, लेकिन लोगों ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा था। उनको शायद किसी चमत्कार की उम्मीद थी। लेकिन, सोमवार सुबह जब प्रणब मुखर्जी की हालत बिगड़ने की जानकारी मिली तो इन लोगों में निराशा फैलने लगी। शाम को प्रणब मुखर्जी के निधन की खबर आई। इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति के बीरभूम जिले के मिराटी गांव में मातम और सन्नाटा पसर गया। इस गांव के लोग एक पूर्व राष्ट्रपति नहीं, बल्कि एक अभिभावक और एक ऐसे मित्र के निधन का शोक मना रहे हैं जो आधी रात को भी सबकी समस्याएं सुन कर उनकी मदद के लिए तैयार रहता था। प्रणब का जन्म इसी गांव में हुआ था। स्वस्थ होने की कामना के लिए यज्ञ प्रणब मुखर्जी के बीमार होने के बाद इन दोनों गांवों में लोगों ने उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना के साथ यज्ञ आयोजित किया था। प्रणब के गांव में रहने वाले प्राथमिक स्कूल के शिक्षक कनिष्क चटर्जी कहते हैं, "उनके बीमार होने की खबर मिलने के बाद ही मन खराब हो गया था। लेकिन, हमें उम्मीद थी कि वह मौत को मात देकर लौट आएंगे। ऐसा हो नहीं सका।" कनिष्क कहते हैं- देश के शीर्ष पद पर पहुंचने के बावजूद प्रणब अप

दुष्यंत कुमार का जन्मदिन; दूसरे विश्वयुद्ध की 81 साल पहले शुरुआत; एलआईसी ने शुरू किया था काम

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आज ही के दिन 1933 में उत्तरप्रदेश के बिजनौर में मशहूर कवि और गज़ल लेखक दुष्यंत कुमार का जन्म हुआ था। सिर्फ 42 साल की उम्र में हार्ट अटैक की वजह से उनका निधन हुआ। लेकिन इतनी कम उम्र में भी दुष्यंत ने ऐसी रचनाएं लिखीं कि अमर हो गए। दुष्यंत की रचनाओं की खासियत थी उनका दायरा। कभी तो वे आपातकाल की पृष्ठभूमि में क्रांतिकारी अंदाज में लिखते “कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो', तो कभी रोमांटिक अंदाज में कहते -“तू किसी रेल-सी गुजरती है, मैं किसी पुल-सा थरथराता हूं।” दुष्यंत कुमार या दुष्यंत कुमार त्यागी शुरुआत में दुष्यंत कुमार परदेशी के नाम से लिखा करते थे। भोपाल उनकी कर्मभूमि रही। वे आपातकाल में संस्कृति विभाग में काम करते हुए भी सरकार के खिलाफ लिखते रहे। इसका खामियाजा भी उन्हें उठाना पड़ा। 81 साल पहले दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ 1914 से 1918 तक पहला विश्वयुद्ध हुआ और कई संधियों के साथ खत्म हुआ था। लेकिन कई मुद्दे अनसुलझे थे, जिनकी वजह से अस्थिरता और तनाव कायम था। एक सितंबर 1939 को करीब 15 लाख सैनिकों के साथ एडॉल्फ हिटलर की जर्मन सेना ने पोलैंड पर हमल

रिमोट लर्निंग असरदार हो इसके लिए सुरक्षित डिजिटल माहौल जरूरी, प्राइवेसी को लेकर सतर्क रहें बच्चे और पैरेंट्स

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क्रिश्चियन कैरन. महमारी के कारण लाखों छात्र ऑनलाइन क्लासेज लेने को मजबूर हैं। ऐसे में छोटे बच्चों के माता-पिता के भी वर्चुअल लर्निंग के मामले में समय, शेड्यूल और टेक्नोलॉजी जैसे कई चीजों को लेकर परेशान हैं। ऐसे में एक सवाल जिसको लेकर ज्यादा चर्चा नहीं हुई, वह है प्राइवेसी। सवाल उठता है कि रिमोट लर्निंग कैसे हमारी प्राइवेसी को नुकसान पहुंचा रही है और इससे बचने के लिए हम क्या कर सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट में लर्निंग टेक्नोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर टोरी ट्रस्ट ने कहा, "मेरे हिसाब से सबसे बड़ी परेशानी यह है कि हम क्लासरूम जैसी चीजों को वर्चुअल तरीके से दोहराने की कोशिश कर रहे हैं।" उन्होंने कहा- खासतौर से महामारी के दौरान यह सच है, जब कई सारे मानसिक तनाव झेलने वाले छात्रों को रिमोट लर्निंग के माहौल में पढ़ने को मजबूर हैं। ऐसे में सात एक्सपर्ट्स की मदद से जानिए कैसे बच्चों को सुरक्षित रखें। बच्चों से प्राइवेसी को लेकर बात करें एजुकेशनल कंसल्टेंट और क्लिनिकल सोशल वर्कर जेन कोर्ट ने कहा, "यह पैरेंट्स के लिए जरूरी है कि बच्चों से प्राइवेसी को लेकर बात करे

दवा की तय कीमत से ज्यादा वसूलने पर भी लाइसेंस रद्द करना मुश्किल, सिर्फ जुर्माना वसूल सकती हैं एजेंसियां

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नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) की ओर से दवा की कीमत तय करने के बाद भी यदि दवा कंपनियां इससे ज्यादा कीमत वसूल करती है तो इन कंपनियों का लाइसेंस रद्द नहीं किया जा सकता। ड्रग्स कंसलटेटिव कमेटी ने कहा है कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे लाइसेंस रद्द किया जा सके। डीटीएबी ने भी लाइसेंस रद्द करने से इनकार किया था इससे पहले ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड (डीटीएबी) ने भी ऐसी कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने से इनकार कर दिया था। संसद की स्थाई समिति ने अपनी 54वीं रिपोर्ट में कहा है कि दवा कंपनी यदि तय कीमत से ज्यादा पैसा वसूल करती हैं, या अपनी मर्जी से दवा की कीमत तय करती है तो इनसे ब्याज सहित जुर्माना वसूला जाए। जुर्माना नहीं देने पर कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने पर विचार करें। स्वास्थ्य मंत्रालय से भी कहा है यदि जरुरत पड़े तो ड्रग्स प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स में जरुरी बदलाव करें। मनमाने तरीके से कीमत बढ़ाने वाली कंपनियों से जुर्माना वसूला जाए एनपीपीए का कहना है कि कीमत तय करने के बाद भी जिन कंपनियों ने दवा

यह शर्मिंदगी की बात है कि देश के छात्र असमंजस में हैं, महामारी और लॉकडाउन ने उनके सपनों को पीछे धकेल दिया है

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कोरोना की वजह से छात्र समुदाय बहुत परेशान है। अपनी शिक्षा पर बहुत समय, मेहनत और पैसा खर्च करने के बाद उन्हें अपनी योजनाएं बिगड़ती दिख रही हैं। साथ भी भविष्य अनिश्चित हो गया है। महामारी और फिर लॉकडाउन ने उनके सपनों को पीछे धकेल दिया है। ऐसे में उन्हें इस असमंजस में डालना और भी बुरा है कि वे सेहत चुनें या अपना अकादमिक भविष्य। शर्मिंदगी की बात है कि अभी इसी स्थिति का सामना नेशनल एलिजिबिटी एंट्रेंस टेस्ट (नीट) और जॉइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन (जेईई) की तैयारी कर रहे छात्रों को करना पड़ रहा है, जिनकी परीक्षाएं इस महीने होनी हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि अभी भीड़ से बचना चाहिए नीट और जेईई पहले अप्रैल और मई में होनी थीं, लेकिन दो बार आगे बढ़ाई जा चुकी हैं। इसका मतलब सरकार ने सोचा कि जब भारत में 50 हजार कोरोना मरीज थे, तब इन बड़ी परीक्षाओं को आगे बढ़ाना सही था, लेकिन अब जब कोरोना के मामले 36 लाख के पार जा चुके हैं, सरकार को परीक्षा हॉल में हजारों छात्रों की भीड़ इकट्‌ठा करना सही लग रहा है। यह अतार्किक और खतरनाक है। कोविड-19 की वैज्ञानिक समझ कहती है कि मौजूदा स्थिति में बड़े आयोजन नहीं करने चाहिए, भीड़ स