सरकार को लॉकडाउन से पहले प्रवासी मजदूरों को घर भेजना चाहिए था, रिवर्स माइग्रेशन से अब वे देर से लौटेंगे, लेकिन लौटेंगे जरूर: प्रो. चिन्मय तुंबे

(मनीषा भल्ला).दुनियाभर में माइग्रेशन के लिए चर्चित किताब ‘इंडिया मूविंग: अ हिस्ट्री ऑफ माइग्रेशन’ के लेखक और आईआईएम अहमदाबाद में प्रोफेसर चिन्मय तुंबे से इस वक्त कई राज्य सरकारें माइग्रेंट्स को लेकर पॉलिसी मेकिंग में एडवोकेसी-कंस्लटेंसी ले रही हैं।

तुंबे का मानना है कि कोविड-19 के चलते बेशक दुनियाभर में लॉकडाउन हुआ, लेकिन पूरी दुनिया में माइग्रेंट्स के साथ ऐसा बुरा कहीं नहीं हुआ, जैसा भारत में हुआ। माइग्रेशन के विभिन्न पहलुओं पर उनसे की गई बातचीत के अंश...

सवाल:कोरोना को लेकर दुनिया में जो चल रहा है, उससे हमारे और उनके बीच एक बड़ा अंतर क्या है?
जवाब: दूसरे देशों में सिर्फ कोरोना चल रहा है। हमारे देश में सबसे बड़ा अंतर यह है कि हमारे देश में कोरोना और माइग्रेशन दोनों चल रहे हैं।

सवाल:सरकार माइग्रेंटस को घर क्यों नहीं भेजना चाहती थी? इसके पीछे क्या कोई खास वजह थी?

जवाब: सरकार को यह ही नहीं पता था कि देश में कितने लोग कोरोना से संक्रमित हैं। हर्ष मंदर समेत कुछ लोगों ने माइग्रेंट्स के मुद्दे पर एक याचिका दायर की थी। उस संबंध में सुप्रीम कोर्ट को दिए जवाब में सरकार ने कहा कि हम माइग्रेंट्स को घर इसलिए नहीं भेज सकते, क्योंकि एक तिहाई माइग्रेंट्स के कोरोना संक्रमित होने का खतरा हो सकता है। 25 मार्च को लॉकडाउन हुआ, अगर लाखों लोग संक्रमित होते तो सरकार को पता होना चाहिए था। इसलिए इन लोगों को लॉकडाउन से पहले ही घर भिजवा देना चाहिए था।

जैसे यूके समेत कई देशों ने अपने यहां से छात्रों को एक हफ्ते पहले उनके घर पहुंचाया। भारत में माइग्रेंट्स घर जाना चाहते थे, सरकार इन्हें घर भेज सकती थी, लेकिन लॉकडाउन इतना सख्त था कि लोग पैदल ही चल पड़े।
सवाल:मजदूर अपने गांव पहुंच चुके हैं और जा भी रहे हैं, इसका नतीजा क्या होने वाला है?
जवाब:कोरोना के आंकड़े तो बढ़ेंगे ही। सरकार का तर्क था कि मजदूरों को घर भेजेंगे तो कोरोना और बढ़ेगा लेकिन शहरों में लोग घनी आबादी वाली बस्तियों में रह रहे हैं, जहां सोशल डिस्टेंसिंग कभी नहीं हो सकती है।
सवाल:आखिरकार सरकारों से कहां पर चूक हुई?
जवाब: राज्य सरकारों के बीच तालमेल और सहमति नहीं है। एक राज्य ने तो अपनेे निगेटिव मरीजों को लेने से भी इनकार कर दिया था। उसकी एक वजह यह है कि सब राज्यों को यह आंकड़ा मेंटेन रखना है कि हमारे पास कोरोना के केस कम से कम हैं। महाराष्ट्र ने तो दूसरे राज्यों से कहा भी कि वह उनके राज्यों के लोगों को वापस भेजना चाहता है लेकिन कई राज्यों ने इसके लिए सहमति नहीं जताई। पहल केंद्र सरकार को करनी चाहिए थी। इन लोगों को ट्रेन का टिकट भी फ्री में दिया जाना चाहिए था।

सवाल:माइग्रेशन पर राजनीति भी होने लगी है, बीच का रास्ता क्या हो सकता है?
जवाब: जो भयावह स्थिति होने वाली है, उसका एकमात्र हल यह है कि यूपी और बिहार जैसे राज्यों की सरकारों को दूसरे राज्यों से बात करनी चाहिए। जहां भी लेबर की जरूरत है, उसे अपने यहां से माइग्रेंट्स और ग्रामीणोंको भेजना चाहिए।

सवाल:इस माइग्रेशन को आप कैसे देख रहे हैं?
जवाब: माइग्रेशन इतिहास में हमेशा होता आया है। अलग-अलग आर्थिक प्रभाव उसकी वजह रहे हैं। इसका एक चक्र होता है। लोग एक से दूसरी जगह जाते हैं लेकिन मौजूदा माइग्रेशन अब तक के इतिहास में सबसे अलग तरह का माइग्रेशन है। क्योंकि पहली बार एक ही वक्त पर पूरे देश में हर जगह से माइग्रेशन हो रहा है। इसे रिवर्स माइग्रेशन कहते हैं।

इससे पहले छठ पर लोग बिहार जाते थे, आंध्रप्रदेश वाले अपने त्योहार मनाने जाते थे, यानी किसी न किसी मौके पर अलग-अलग माइग्रेंट्स अलग-अलग समय पर अपने गांव जाते थे। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक ही वक्त पर पूरा देश यहां से वहां माइग्रेट कर रहा है और मर-मर कर जा रहा है। बिना ट्रांसपोर्ट के जा रहा है।

सवाल:यह माइग्रेशन इतिहास का सबसे अलग तरह का माइग्रेशन किस तरह है?
जवाब:एक ही वक्त पर बिना ट्रांसपोर्ट के पैदल पूरा भारत चल दिया, ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। माइग्रेंट्स इससे पहले अपनी मर्जी से वाहन के जरिए गांव पहुंचे हैं। और जहां उन्हें जाना होता था, वहां जाते थे। लेकिन इतना पैदल कभी नहीं चले। हालांकि, नोटबंदी में भी माइग्रेशन हुआ लेकिन इतना चलना कभी नहीं हुआ। यहां तक कि देश के विभाजन (1947) में भी माइग्रेशन हुआ, लेकिन उस वक्त भी कुछ-कुछ ट्रेन चालू थीं। बिना ट्रांसपोर्ट के यह इतिहास का पहला माइग्रेशन है।

सवाल:कोई आंकड़ा है कि कितने करोड़ लोग माइग्रेट हुए या पैदल चले हैं?
जवाब: इस आंकड़े को तो देश के कई संस्थान ढूंढ और खंगाल रहे हैं। लेकिन अभी तक 2.5 करोड़ लोग माइग्रेट हुए हैं। यह आंकड़ा सिर्फ इंटरस्टेट माइग्रेशन का है।

सवाल:लॉकडाउन तो विदेशों में भी हुआ, सरकारों का कहना है कोरोना रोकने का यह सबसे कारगर तरीका है, तो क्या वहां भी माइग्रेशन हुआ?
जवाब: नहीं, वहां ऐसा नहीं हुआ। हम यूएस या चीन की बात करें तो वहां के माइग्रेंट्स परिवारों के साथ रहते हैं। ऐसे वक्त में इंसान अपने घर जाना चाहता है। हमारे देश में प्रथा है कि मज़दूर वर्ग में मर्द परिवार को साथ न रखकर अकेले कमाने शहर आता है। ऐसी आपदा के वक्त उसे अपने घर जाना होता है। हमारे माइग्रेंट्स घर जाना चाहते थे।

जून की बजाए मार्च में ही घर आ गए श्रमिक, लौटने में होगी देरी
श्रमिक अमूमन जून-जुलाई में माइग्रेट होते थे। इस बार मार्च में ही आ गए। सितंबर तक वापस लौटकर आ जाते थे। लेकिन इस दफा वे देर से लौटेंगे, लेकिन लौटेंगे जरूर। क्योंकि महानगरों में लेबर की कमी हो जाएगी और राज्यों के पास इनके लिए नौकरियां नहीं हैं।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
‘इंडिया मूविंग: अ हिस्ट्री ऑफ माइग्रेशन’ के लेखक और आईआईएम अहमदाबाद में प्रोफेसर चिन्मय तुंबे।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3d9qYj9
via IFTTT

Comments

Popular posts from this blog

कर्मचारियों के DA कटौती का आदेश वापस ले रही है मोदी सरकार? जानिए वायरल मैसेज की सच्चाई