सबसे ज्यादा प्रभावित असंगठित क्षेत्र, वर्कफोर्स में 93% हिस्सा, आर्थिक सुरक्षा में सबसे पीछे ये 41 करोड़ लोग

नई दिल्ली.कोरोना की वजह से पूरा देश थमा हुआ है। स्वास्थ्य का यह खतरा समाज की सबसे नीचे की कड़ी के लिए आर्थिक खतरा भी बन गया है। इसी स्थिति को देखते हुए केन्द्र सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपए का प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज जारी किया है। उधर, देशभर से मजदूरों के पलायन की दर्दनाक तस्वीरें आ रही हैं। पांच-पांच सौ किमी से भी ज्यादा पैदल चलकर ये लोग अपने घरों को लौट रहे हैं। इनकी तस्वीरों के साथ पुलिस द्वारा इन्हें पीटने के वीडियो भी वायरल हो रहे हैं। पहले कोरोना, फिर भूख और अब पुलिस की पिटाई का डर। सेहत के बाद कोरोना का असर देश के असंगठित क्षेत्र पर पड़ा है। ये वो लोग हैं, जो या तो ठेके पर काम करते हैं। या फिर मजदूर हैं, जो रोज की दिहाड़ी से अपने परिवार का पेट भरते हैं। यह असंगठित क्षेत्र कितना बड़ा है इसका सही अंदाजा सरकार को भी नहीं है।

2019 में जारी हुए इकोनॉमिक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल वर्कफोर्स में से 93 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है। वहीं 2018 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट में यह आंकड़ा 85 फीसदी है। देश की इकोनॉमी को चलाने में इस असंगठित क्षेत्र का बड़ा हाथ है। इसके बावजूद इसकी रक्षा के लिए ठोस प्रावधान नहीं हैं। पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे 2017-18 की रिपोर्ट जो कि पिछले साल जारी हुई थी, उसमें कहा गया है कि इन्फॉर्मल सेक्टर (नॉन एग्रीकल्चर) में रेगुलर/सैलरीड कर्मचारियों में भी 71% ऐसे हैं, जिनके पास लिखित में जॉब कॉन्ट्रैक्ट नहीं है। 54.2 फीसदी ऐसे हैं, जिन्हें पेड लीव नहीं मिलती। इतना ही नहीं, इसमें से 49.6 फीसदी किसी भी सामाजिक सुरक्षा योजना कीयोग्यता नहीं रखते। स्पष्ट है असंगठित क्षेत्र का दायरा न केवल व्यापक हैबल्कि पूरी तरह असुरक्षित भी है। कृषि क्षेत्र जहां देश का सबसे बड़ा असंगठित वर्ग काम करता है उसके भी इस लॉक डाउन से प्रभावित होने की आशंका है। विशेषज्ञों से जानते हैं कि कोराेनाकी मार किस तरह इस वर्ग पर पड़नेजा रही है।

8 बिंदुओं के आधार पर जानिए इस पलायन से जुड़ा सबकुछ :

सवाल-1: कोरोना के बाद अब ताजा संकट क्या है?
जवाब भूख और पलायन:ताजा संकट मजदूरों के पलायन का है। ये सिर्फ कोराेना का ही नहीं, बल्कि भूख का भी सामना कर रहे हैं। जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक्स विभाग के प्रोफेसर डॉ. अमिताभ कुंदू के अनुसार- राेजगार के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन करने वाले लोगों की संख्या लगभग 1.4 करोड़ है। वहीं एक राज्य में ही एक शहर से दूसरे शहर में रोजगार के लिए जाने वाले लोगों की बात करें तो यह संख्या कई करोड़ में पहुंचती है। ये 1.4 करोड़ लोग ऐसे हैं जो कंस्ट्रक्शन जैसे क्षेत्रों में केवल मजदूरी या ऐसे ही कार्यों के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं।

सवाल- 2: देश में असंगठित वर्कफोर्स कितनी बड़ी है?

जवाब-तीन अलग-अलग आंकड़े:

1. इकोनॉमिक सर्वे (2018-19) के अनुसार भारत में कुल वर्क फोर्स का 93% हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है।
एक अनुमान के अनुसार देश में कुल वर्क फोर्स यानी काम करने वाले लोगों की संख्या 45 करोड़ है। इसमें से 93 प्रतिशत यानी देश के असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या लगभग 41.85 करोड़ है।

2. नीति आयोग द्वारा नवंबर 2018 में जारी किए आंकड़ों के अनुसार कुल वर्क फोर्स का 85 प्रतिशत मानव श्रम असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है।

3. नेशनल स्टैटिस्टिकल कमीशन 2012 की रिपोर्ट में इंफाॅर्मल वर्क फोर्स को कुल वर्क फोर्स का 90% बताया गया है।

वहीं, आईआईएम अहमदाबाद से जुड़ी अर्थशास्त्री रितिका खेड़ा कहती हैं- 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार देश के एक तिहाई मजदूर दिहाड़ी मजदूर हैं।

सवाल-3इस असंगठित क्षेत्र में कौन-कौन से लोग हैं? सेक्टर वाइज क्या स्थिति है?

जवाब-सीआईआई द्वारा वर्ष 2011-12 में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार देश के गैर कृषि क्षेत्र के 7 प्रमुख सेक्टर्स में ही लगभग 16.35 करोड़ लोग असंगठित रूप से कार्यरत हैं। इनमें पहले स्थान पर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और दूसरे स्थान पर ट्रेड, होटल और रेस्टोरेंट इंडस्ट्री व तीसरे स्थान पर कंस्ट्रक्शन का क्षेत्र है। इन्हीं सेक्टर्स के मजदूरों का पलायन सबसे ज्यादा हो रहा है।

सवाल- 4 : देश में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोग कितने हैं?
जवाब-
2011 की जनगणना के दौरान देश में कुल आबादी में से 21.9% गरीबी रेखा के नीचे मानी गई थी। सरकार द्वारा घोषित पैकेज का लाभ देश के 80 करोड़ गरीबों को मिलेगा। जनगणना में देश भर में गरीबों की संख्या लगभग 26.8 करोड़ बताई गई थी। जिनकी प्रतिदिन की आय 1.90 डॉलर (लगभग 142.80 रु) या उससे कम थी। इन लोगों के सामने सबसे बड़ा खतरा खड़ा हो गया है।

सवाल- 5 : इनमें से कितने लोगों के पास जन-धन खाते, कितनों को मिलेगा लाभ?
जवाब- केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने जुलाई 2019 में लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि 26 जून, 2019 तक देश भर में प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत 35.99 करोड़ खाते खोले गए। इनमें से वर्तमान में 29.54 करोड़ एक्टिव हैं। वहीं सरकार की प्रधानमंत्री जनधन योजना की वेबसाइट के अनुसार 18 मार्च 2020 तक इस योजना के कुल लाभान्वित लोगों की संख्या 38.28 करोड़ है। केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए 1.70 लाख करोड़ के गरीब कल्याणपैकेज के तहत इन खातों में राशि स्थानांतरित की जाएगी।

सवाल- 6 : अभी भूख की क्या स्थिति है, कितने लोगों को खाना नहीं मिल पाता?
जवाब- 2019 में जारी हुए ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 117 देशों की रैंकिंग में भारत का 102वां स्थान था। संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत काम करने वाली फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन द्वारा 2019 में जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक 2016-18 के बीच भारत में ऐसे लोगों की संख्या कुल आबादी का 14% थी, जिन्हें पोषणयुक्त आहार नहीं मिल पाता है। 135 करोड़ की आबादी के लिहाज से देखें तो यह संख्या 18.90 करोड़ है।

सवाल- 7 : पलायन करने वाले कितना कमा पाते होंगे?
जवाब-
पलायन करने वाले लगभग 1.4 करोड़ लोगों की पारिवारिक आय औसतन 3500 से 4000 रुपए मासिक के बीच है। 5 लोगों के परिवार को एक यूनिट माना जाए तो प्रति व्यक्ति मासिक आमदनी 700 से 800 रुपए बैठती है। यह आमदनी देश में शहरी क्षेत्र की गरीबी रेखा के बराबर है।

सवाल-8 : राज्यवार देखिए, काम के लिए पलायन करने वाले मजदूरों की स्थिति

जवाब -

राज्य माइग्रेंट्स
उत्तर प्रदेश 40.20 लाख
बिहार

36.16 लाख

राजस्थान

18.44 लाख

मध्य प्रदेश 18.26 लाख
उड़ीसा 05.03 लाख

नोट: 7 प्रमुख राज्यों महाराष्ट्र, यूपी, बंगाल, गुजरात, केरल, पंजाब व असममें जाने वाले माइग्रेंट्स के आधार पर। ( स्रोत, सेंसेक्स-2011 )

भास्कर एक्सपर्ट : रितिका खेड़ा (अर्थशास्त्री, एसोसिएट प्रोफेसर, आईआईएम, अहमदाबाद)

असंगठित क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित होगा लॉकडाउन से
देश की करीब 80 फीसदी वर्कफोर्स इन्फॉर्मल इकोनॉमी में है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार चार फीसदी कॉन्ट्रैक्ट वाले वर्कर हैं। केवल पांच में से एक के पास मासिक वेतन वाली नौकरी है। वर्कफोर्स का आधा हिस्सा स्वरोजगार वाले हैं। दुकानदार, रेहड़ी लगाने वाले, सैलून चलाने वाले, साइकल रिपेयर करने वाले मोची आदि हैं। लॉकडाउन से जो आर्थिक संकट पैदा होगा, उससे कोई नहीं बच पाएगा। दरअसल, आर्थिक व्यवस्था में हर सेक्टर दूसरे से जुड़ा होता है। गांवों से शहरों को खाने की सप्लाई मिलती है तो गांवों को शहरों से जरूरत का सामान। जब प्रोडक्शन ही नहीं होगा तो कीमतें बढ़ेंगी। ऐसे में वायरस की तरह भूख भी खतरनाक साबित होगी।

भास्कर एक्सपर्ट :प्रोफेसर अरुण कुमार (जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली )

युद्ध से भी भयानक स्थिति, अगर लॉकडाउन लंबा खिंचा तो बदतर होंगे हालात
असंगठित क्षेत्र के पास सोशल सिक्योरिटी नहीं होती है। नियोक्ता का काम बंद होते ही सबसे पहले यहां काम करने वाले व्यक्ति का रोजगार छिनता है। देश में सर्वाधिक लोग कृषि क्षेत्र में असंगठित रूप से काम करते हैं। इसमें देश का लगभग 45 प्रतिशत वर्कफोर्स काम कर रहा है। इस लॉकडाउन का सबसे बुरा असर सप्लाई चेन के टूटने के रूप में होगा। एम्प्लायर को नुकसान होगा, वह कामगार काे निकाल बाहर करेगा। रोजगार छिनते ही कामगार की आमदनी बंद हो जाएगी। जैसे-जैसे इनकी जमापूंजी खत्म होगी लोग भोजन-पानी को तरस जाएंगे। यही सबसे खतरनाक स्थिति होगी। इसी से बचने के लिए दूसरे राज्यों में काम करने वाले लोेग अपने घरों की ओर लौट रहे हैं। एक तरह से देखा जाए तो यह युद्ध से भी भयानक स्थिति है।



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ये दो तस्वीरें हैं। एक विभाजन के वक्त की है, दूसरी कोराेना के बीच पलायन की। तब घर छोड़ने को मजबूर थे, अब घर लौटने को।


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