पड़ोसियों के घर जलने से नहीं बचा पाई दिल्ली पुलिस, कई बार फोन करने पर भी नहीं पहुंची फोर्स
नई दिल्ली. खजूरी खास की मुख्य सड़क पर सुरक्षाबलों के जवान भारी संख्या में मौजूद हैं। आईपीएस अधिकारी मोहम्मद अली भी इनमें शामिल हैं, जो यहां मौजूद लोगों की शिकायत सुन रहे हैं और सवालों का जवाब दे रहे हैं। राहत सामग्री बांटती कुछ गाड़ियां ईंट-पत्थरों से भरी हुई सड़क पर धीरे-धीरे आगे बढ़ रही हैं और कई लोग सामग्री पाने के लिए गाड़ियों के पीछे दौड़ रहे हैं। इस इलाके में हुई आगजनी के निशान चारों तरफ देखे जा सकते हैं। लेकिन कुछ गलियां इतनी ज्यादा जली हैं कि ध्यान खींच ले जाती हैं। ऐसी ही एक गली में कुछ अंदर जाने पर एक मकान नजर आता है, जिसके बाहर लगी नेम-प्लेट पर लिखा है ‘हृदेश कुमार शर्मा, दिल्ली पुलिस।’
यह मकान इसलिए भी सबसे अलग नजर आता है, क्योंकि इसके आसपास के कई मकान पूरी तरह जल चुके हैं, लेकिन इसमें आग नहीं लगी। ऐसे ही कई और मकान भी इस गली में मौजूद हैं, जिनके अगल-बगल के मकान तो जलकर खाक हो गए, लेकिन ये चुनिंदा मकान पूरी तरह सुरक्षित हैं। जल चुके मकान खुद ही इस बात की गवाही दे रहे हैं कि इस इलाके में दंगाइयों ने निशाना बनाकर एक ही समुदाय के घरों में आगजनी की। इस गली में रहने वाले हृदयेश कुमार शर्मा अकेले व्यक्ति नहीं हैं, जो दिल्ली पुलिस में नौकरी करते हैं। यहां दिल्ली पुलिस के कई अन्य जवानों और अधिकारियों के भी घर मौजूद हैं। इसके बावजूद भी इस गली में भीषण आगजनी हुई।
जिस गली में दिल्ली पुलिस के इतने लोग रहते हैं वहां भी पुलिस समय से क्यों नहीं पहुंच सकी? यह सवाल करने पर परमजीत सिंह कहते हैं, ‘‘मैं भी इसी गली में रहता हूं, दिल्ली पुलिस से ही रिटायर हुआ। हमने उस दिन पुलिस को कितने फोन किए, ये आप हमारे कॉल रिकॉर्ड में देख लीजिए। कई-कई कॉल करने के घंटों बाद भी पुलिस यहां नहीं आई।’’
इसी गली में बनी फातिमा मस्जिद भी पूरी तरह जला दी गई है। इस मस्जिद से कुछ ही आगे उत्तर प्रदेश के एक सरकारी स्कूल में शिक्षक कृष्ण कुमार का घर है। कुमार मोहल्ले के ही कुछ अन्य लोगों के साथ घर के बाहर चारपाई डाले बैठे थे। उन्होंने बताया, ‘‘यहां 25 तारीख को आग लगाई गई, लेकिन 24 से ही माहौल बहुत खराब हो गया था। हमने उसी रात पुलिस को कई बार फोन किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। 25 की सुबह दंगाई यहां घुस आए और उन्होंने कई मकान फूंक डाले।’’
इस गली में जो घर जले हैं उनमें सिर्फ पेट्रोल बम मारकर आग नहीं लगाई गई है, बल्कि घरों का ताला तोड़कर या लोहे की शटर काटकर स्कूटर-बाइक घरों के अंदर घुसाए गए और उनमें आग लगाई, ताकि ज्यादा फैल सके। करीब सभी जलाए मकानों में ऐसा किया गया। इसमें दंगाइयों को कई घंटों का समय लगा होगा। पर इस दौरान पुलिस नहीं पहुंच सकी, जबकि दिल्ली पुलिस के कई अधिकारी यहां रहते हैं। अपने ही पड़ोसियों के घर जलने से दिल्ली पुलिस रोक नहीं पाई।
जब यहां आग लगाई गई तब दिल्ली पुलिस के वे लोग कहां थे जो इस गली में रहते हैं? इस सवाल पर कृष्ण कुमार कहते हैं- ‘‘सभी लोगों की तैनाती दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में है। वे लोग अपनी ड्यूटी पर थे। उनके परिवार यहां थे, जब दंगा भड़का तो उन्हें भी हमारी तरह यहां से निकलना पड़ा। हमने शुरुआत में दंगाइयों को रोकने की बहुत कोशिश की। उन्होंने मुझे धक्का मारते हुए कहा कि अंकल आप हट जाइए, हम इनके घर नहीं छोड़ेंगे। हम अपनी जान बचाने के लिए गली से निकल गए।’’
खजूरी खास एक्स्टेंशन की यह गली उन चुनिंदा इलाकों में शामिल है, जहां सबसे योजनाबद्ध तरीके से आगजनी की गई। यहां सिर्फ मुस्लिम समुदाय के घरों को निशाना बनाया गया है, जबकि हिंदुओं के घर सुरक्षित हैं। इसके ठीक उलट बृजपुरी और शिव विहार में सिर्फ हिंदुओं के घर जले हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय के घर सुरक्षित हैं। इन सभी जगहों के पीड़ित समुदायों की शिकायत एक जैसी है कि दिल्ली पुलिस समय रहते बचाव के लिए नहीं पहुंची। जबकि आगजनी से कई-कई घंटे पहले ही यहां के तमाम लोग पुलिस को फोन करके बता चुके थे कि इलाके में माहौल बेहद खराब हो चुका है।
इन दंगों में दिल्ली पुलिस की भूमिका पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ कुछ पुलिस अधिकारी ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी जान दांव पर लगाकर भी कई लोगों की जान बचाई है। ऐसा ही एक नाम उत्तर प्रदेश पुलिस के अधिकारी नीरज जादौन का भी है। नीरज उत्तर प्रदेश में पुलिस अधीक्षक हैं। 25 फरवरी को वे दिल्ली-उत्तर प्रदेश बॉर्डर गश्त कर रहे थे। तभी उन्होंने बमुश्किल दो से तीन सौ मीटर दूर स्थित करावल नगर इलाके से गोली चलने की आवाज सुनी। यहां 40-50 लोगों की भीड़ गलियों में तोड़फोड़ कर रही थी। घरों में पेट्रोल बम फेंके जा रहे थे। ऐसे में नीरज तमाम प्रोटोकॉल तोड़ते हुए और अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाते हुए दिल्ली राज्य की सीमा में दाखिल हो गए और उन्होंने हथियारों से लैस दंगाइयों की भीड़ को खदेड़ दिया। इन दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस ने भी अगर नीरज जैसी सक्रियता दिखाई होती तो कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी।
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