मोदी सरकार में जजों के ट्रांसफर का चौथा बड़ा विवाद; इससे पहले जिन पर विवाद हुए, उन्होंने अमित शाह से जुड़े फैसले दिए थे
नई दिल्ली. जस्टिस एस मुरलीधर का ट्रांसफर दिल्ली हाईकोर्ट से पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में किए जाने पर विवाद खड़ा हो गया। विवाद इसलिए क्योंकि एक दिन पहले ही यानी 26 फरवरी को जस्टिस मुरलीधर ने तीन भाजपा नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में देरी पर नाराजगी जताई थी। ये तीन नेता थे- अनुराग ठाकुर, परवेश वर्मा और कपिल मिश्रा। उससे भी एक दिन पहले यानी 25-26 फरवरी की रात 12:30 बजे जस्टिस मुरलीधर ने दिल्ली हिंसा से जुड़े मामले परअपने घर पर सुनवाई की थी। हालांकि, इस पर सरकार की दलील है कि जस्टिस मुरलीधर के ट्रांसफर की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने 12 फरवरी को कर दी थी, जो सही भी है,लेकिन सरकार ने इसका नोटिफिकेशन 26 फरवरी की रात को जारी किया। जजों के ट्रांसफर से जुड़ा ये कोई पहला विवाद नहीं है। इससे पहले भी मोदी सरकार में जजों के ट्रांसफर पर विवाद होते रहे हैं। मोदी सरकार में ये चौथा बड़ा विवाद है, लेकिन सबसे पहले बात जस्टिस मुरलीधर की....
दो दिन...दो अलग-अलग सुनवाई...निशाने पर दिल्ली पुलिस, सरकार, भाजपा
तारीख: 25-26 फरवरी, समय: रात के 12:30 बजे
वकील सुरूर मंदर ने याचिका लगाई। उनकी अपील थी किहिंसाग्रस्त मुस्तफाबाद के अल-हिंद अस्तपाल से घायलों को जीटीबी अस्पताल या दूसरे सरकारी अस्पतालों में भर्तीकराया जाए। इस याचिका पर देर रात जस्टिस मुरलीधर और जस्टिस अनूप भंभानीने सुनवाई की और दिल्ली पुलिस को घायलों को इलाज के लिए दूसरे सरकारी अस्पतालों में ले जाने का आदेश दिया।
तारीख: 26 फरवरी, समय: दोपहर 12:30-1:00 बजे
एक्टिविस्ट हर्ष मंदर ने भड़काऊ बयानों के लिए भाजपा नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग करते हुए याचिका लगाई। जस्टिस मुरलीधर ने इसकी सुनवाई की। जस्टिस मुरलीधर ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई। कहा- हिंसा रोकने के लिए तुरंत कड़े कदम उठाने की जरूरत है। हम दिल्ली में 1984 जैसे हालात नहीं बनने देंगे।
जज मुरलीधर से पहलेमोदी सरकार में 3 जजों के ट्रांसफरों पर जमकर विवाद हुआ, संयोग से तीनों ने मोदी-शाह से जुड़े फैसले दिए थे
1) जस्टिस विजया के ताहिलरमानी
विवाद की वजह : जस्टिस ताहिलरमानी ट्रांसफर के फैसले से नाराज थीं। उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट से मेघालय हाईकोर्ट ट्रांसफर किए जाने के कॉलेजियम के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की,लेकिन 5 सितंबर 2019 को कॉलेजियम ने मांग ठुकरा दी। नवंबर 2018 में उन्हें मद्रास हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया था। इससे पहले वे दो बार बॉम्बे हाईकोर्ट में एक्टिंग चीफ जस्टिस भी रह चुकी थीं। जजों की संख्या के लिहाज से मेघालय देश की दूसरी सबसे छोटी हाईकोर्ट है। इस कारण भी वे नाराज थीं। आखिरकार 6 सितंबर को उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पद से इस्तीफा दे दिया। 21 सितंबर को राष्ट्रपति ने उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया। जस्टिस ताहिलरमानी 2 अक्टूबर 2020 को रिटायर होने वाली थीं।
बड़ा फैसला : गुजरात दंगों से जुड़े बिल्किस बानो का केस। मई 2017 में जस्टिस ताहिलरमानी की बेंच ने 11 दोषियों की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी थी,जबकि5 पुलिस अफसरों और 2 डॉक्टरों को बरी करने के फैसले को पलट दिया था। इस मामले में कुल 18 लोगों को सजा सुनाई गईथी।
2) जस्टिस अकील कुरैशी
विवाद की वजह : कॉलेजियम ने 10 मई 2019 को जस्टिस अकील कुरैशी का ट्रांसफर बॉम्बे हाईकोर्ट से मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में बतौर चीफ जस्टिस करने की सिफारिश की,लेकिनकेंद्र सरकार ने कॉलेजियम की इस सिफारिश को छोड़कर बाकी सिफारिशें मंजूर कर लीं। इसके बाद कॉलेजियम ने एक बार फिर उन्हें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त करने की सिफारिश भेजी,लेकिन सरकार ने इसे भी वापस भेज दिया। इसके बाद कॉलेजियम ने जस्टिस कुरैशी को सितंबर 2019 में त्रिपुरा हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस नियुक्त करने की सिफारिश की, जिसे सरकार ने मंजूर कर लिया। जस्टिस कुरैशी की नियुक्ति में देरी होने पर गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन ने भी पीआईएल लगाई थी।
बड़ा फैसला : जस्टिस कुरैशी पहले गुजरात हाईकोर्ट के जज थे और उन्होंने 2010 में सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में अमित शाह को दो दिन की पुलिस हिरासत में भेजने का फैसला दिया था।
3) जस्टिस जयंत पटेल
विवाद की वजह : 13 फरवरी 2016 में जस्टिस पटेल को कर्नाटक हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। सितंबर 2017 में कॉलेजियम ने उनका ट्रांसफर कर्नाटक हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट करने की सिफारिश की,लेकिन उनका कहना था कि उनके रिटायरमेंट में 10 महीने बाकी हैं और इतने कम समय के लिएवे इलाहाबाद हाईकोर्ट नहीं जाना चाहते,इसलिए उन्होंने 25 सितंबर 2017 को इस्तीफा दे दिया।
बड़ा फैसला : कर्नाटक हाईकोर्ट आने से पहले जस्टिस पटेल गुजरात हाईकोर्ट में जज थे। वहां उन्होंने एक्टिंग चीफ जस्टिस का पद भी संभाला। जस्टिस पटेल ने ही इशरत जहां एनकाउंटर केस की सीबीआई जांच कराने का आदेश दियाथा।
जस्टिस मुरलीधर के मामले में 15 दिन के भीतर सरकार ने कॉलेजियम की सिफारिश मानी, लेकिन कई सिफारिशें सालों से पेंडिंग रहीं
1) एडवोकेट पीवी कुन्हीकृष्ण : अक्टूबर 2018 में कॉलेजियम ने केरल हाईकोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की। फरवरी 2019 में दोबारा नाम भेजा,लेकिन नियुक्ति13 फरवरी 2020 को हुई।
2) एडवोकेट एसवी शेट्टी : अक्टूबर 2018 में कॉलेजियम ने इनके नाम कर्नाटक हाईकोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की। मार्च 2019 में दोबारा नाम भेजा गया, लेकिनसरकार ने इसे खारिज कर दिया।
3) एडवोकेट एमआई अरुण : इनको भी कर्नाटक हाईकोर्ट में जज बनाने की सिफारिश की थी,लेकिन सरकार ने इसे खारिज कर दिया।
4) एडवोकेट सी. इमालियास : 2017 में कॉलेजियम ने इनका नाम मद्रास हाईकोर्ट में जज के लिए भेजा। अगस्त 2019 में दोबारा सिफारिश की गई,लेकिन अभी तक इनकी नियुक्ति नहीं हुई।
5) जस्टिस विक्रम नाथ : अप्रैल 2019 में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाने की सिफारिश हुई। अगस्त 2019 में इनकी नियुक्ति हुई।
इमरजेंसी में 16 जजों का ट्रांसफर हुआ था
25 जून 1975 से 21 मार्च 1997 तक देश में इमरजेंसी लागू थी। इस दौरान 1976 में 16 हाईकोर्ट के जजों का ट्रांसफर कर दिया गया था। इनमें से गुजरात हाईकोर्ट के जज जस्टिल एसएच सेठ ने ट्रांसफर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उनका ट्रांसफर गुजरात हाईकोर्ट से आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट कर दिया गया था। उनका कहना था कि ट्रांसफर से पहले उनकी सहमति नहीं ली गई थी।
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